Video Of Day

Responsive Ads Here

Thursday, April 16, 2020

what is d.c motor. DC motor Theory.Principle of DC Generator

डीसी मोटर क्या है। डीसी मोटर 


D C जनरेटर क्या है (What is D C generator)

मुख्य डी० सी० मशीनें डी . सी . जेनरेटर तथा डी . सी . मोटर हैं । डी . सी . जेनरेटर यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है । जेनरेटर को यांत्रिक ऊर्जा देने के लिये प्रथम चालक ( prime mover ) का प्रयोग किया जाता है । प्राइम मूवर हेतु कोई डी० सी० अथवा ए . सी . मोटर भी प्रयुक्त किया जा सकता है । मुख्य प्राइम मूवर स्टीम इंजिन , पेट्रोल इंजिन , गैस टरबाइन , जलटरबाइन इत्यादि है । 

जेनरेटर में एक स्थिर भाग (A fixed part in the generator)

जेनरेटर में एक स्थिर भाग ( stator ) चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है तथा एक घूर्णीय गति करने वाला भाग आर्मेचर ( armature ) होता है । स्थिर भाग में चुम्बकीय ध्रुव ( magnetic poles ) एवं क्षेत्र कुण्डली ( field winding ) होती है । आर्मेचर कुण्डली में चालक श्रेणी - समानान्तर क्रम में संयोजित रहते हैं । आर्मेचर शाफ्ट पर एक कम्यूटेटर प्रयुक्त किया जाता है । जिसका संयोजन आर्मेचर चालकों से होता है । कम्प्यूटेटर पर स्थिर ( fixed ) बुश लगे होते हैं जिनके द्वारा आर्मेचर में उत्पन्न धारा बाह्य परिपथ को दी जाती है । 

चुम्बकीय क्षेत्र .फैराडे के विद्युत चुम्बकीय नियम (Magnetic field. Faraday's electromagnetic law)


चुम्बकीय क्षेत्र  में आर्मेचर कुण्डली के घूमने से आर्मेचर चालक चुम्बकीय फ्लक्स को काटते हैं । जिसके फलस्वरूप फैराडे के विद्युत चुम्बकीय नियम 

Faraday's electromagnetic induction laws in hindi
Faraday's electromagnetic induction laws
के अनुसार आर्मेचर चालकों में विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है ।

Working principal of D.C Generator in hindi
Principle of Generator

  डी०सी० जेनरेटर का सिद्धान्त (Principle of DC Generator)

डी०सी० जेनरेटर में विद्युत वाहक बल उत्पन्न होने की क्रिया प्रदर्शित की गई है । जब कुण्डली का तल चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् होता है तब कुण्डली से ग्रंथित ( linked ) फ्लक्स  का मान उच्चतम परन्तु फ्लक्स ग्रन्थियों के परिवर्तन की दर निम्नतम होती है । कुण्डली के 90° घूमने पर ग्रन्थियों के परिवर्तन की दर d ( NΦ ) / dt अधिकतम होती है तथा उत्पन्न वि० वा . बल भी अधिकतम होता है । 


कुण्डली के 180° घूर्णन पर d ( NΦ ) / dt पुनः न्यूनतम होने के कारण वि० वा . बल भी शून्य हो जाता है । इसी   प्रकार 18 से 360 यूर्णन पर यास क्रिया  विपरीत दिशा में होती है   प्ररित किया बल का आकार सदसित  किया गया है 

 धारा के एक ही दिशा में प्रवाह होने के लिये कुण्डली के सिरे एक स्पलिट ( split ) रिंग से कनैक्ट किये जाते हैं । " स्पलिट रिंग कम्यूटेटर की भांति कार्य करता है । यह बशों की टायता से घूमने वाले चालक के सिरों के संयोजन उलट देता है जिससे वि० वा० बल की दिशा लोड R में सदा एक ही रहती है । पाटलियों की संख्या बढ़ाने पर उत्पन्न विद्युत वाहक बल स्थिर  प्राप्त होता है ।
 डी० सी० जेनरेटर में उत्पन्न वि . वा . बल निम्न सूत्र द्वारा दिया जाता है ।
 E = ΦZN/60 (P /A ) 

 यहाँ -
Φ - चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा उत्पन्न फ्लक्स 
Z  - आर्मेचर में चालकों की संख्या 
N - आर्मेचर परिभ्रमण की गति 
P - क्षेत्र में ध्रुवों की संख्या 
A - कुण्डली में समानान्तर पथों ( parallel paths ) की संख्या । यह कुण्डलन के प्रकार अर्थात् लैप अथवा तरंग कुण्डलन पर निर्भर करता है 


डी० सी० जेनरेटर के मुख्य भाग  (Main parts of DC generator )

 डी० सी० जेनरेटर के मुख्य भाग डी . सी . जेनरेटर के मुख्य भाग निम्न हैं ।

( 1 ) क्षेत्र चुम्बक ( Main Field Magnets )
 ( ii ) योक ( Yoke )
( iii ) आर्मेचर ( Armature )
 ( iv ) आमेचर कुण्डलन ( Armature Winding )
( v ) कम्यूटेटर ( Commutator ) 
 (vi ) बुश ( Brush )

 ( 1 ) क्षेत्र चुम्बक ( Main Field Magnets ) :-  क्षेत्र चुम्बक  का कार्य मुख्य फ्लक्स (Φ ) उत्पन्न करना है । यह विद्युत चुम्बक होते हैं । धूव चुम्बक नरम इस्पात Core - Lead Field Coil Lead 
 फील्ड मेगनेट ( Mild Steel ) में बनाये जाते हैं । शन्ट जेनरेटर में क्षेत्र कुण्डलन के लिये पतला चालक तार एवं श्रेणी जेनरेटर में मोटा चालक तार प्रयुक्त किया जाता है ।

 ( ii ) योक ( Yoke )
                         यह जेनरेटर की मुख्य बॉडी ( body ) होती है । इस पर ( अन्दर की तरफ ) मुख्य धूव स्थापित किये जाते हैं । योक के लिये ढलवाँ लोहे ( cast steel ) का प्रयोग किया जाता है ।
 ( iii ) आर्मेचर ( Armature ) 
                           आर्मेचर सिलिकान स्टील की लगभग 0 . 1 सेमी मोटी । लेमिनेशन ( silicon steel laminations ) द्वारा बनाया जाता है । 



लेमिनेशन में आर्मेचर कुण्डली के लिये खाँचे ( Slots ) बने होते हैं । । लेमिनेशन के प्रयोग से आर्मेचर में भंवरधारा हानियाँ कम हो । जाती हैं । 

( iv ) आमेचर कुण्डलन ( Armature Winding )
         आर्मेचर कुण्डली दो प्रकार की होती है । ( i ) लैप कुण्डलन ( ii ) तरंग कुण्डलन । आर्मेचर कुण्डली आर्मेचर में बने खांचों में स्थिर करने के लिये वैज का प्रयोग किया जाता है । आमेचर कुण्डली में तांबे का चालक तार प्रयोग किया जाता है । 

( v ) कम्यूटेटर ( Commutator ) _ _ _ 
         कम्यूटेटर का मुख्य कार्य आर्मेचर में उत्पन्न वि . वा . बल को एक ही दिशीय ( unidirectional ) करना है । कम्यूटेटर में वैज के आकार ( wedge shaped ) की कठोर तांबे की सेगमेन्ट का प्रयोग किया जाता है ।

( vi ) बुश ( Brush ) 
कम्यूटेटर से धारा प्राप्त करने के लिये सुशों का प्रयोग किया जाता है । बुश , कम्यूटेटर पर बुश होल्डर द्वारा स्थिर रहते हैं । बुश सदा कम्यूटेटर सेगमेन्ट को स्पर्श करते हैं । बुशों को कम्यूटेटर अश के सापेक्ष धुमाकर आवश्यकतानुसार व्यवस्थित किया जा सकता है । बुश प्राय : कार्बन अथवा रोपाइट से निर्मित किये जाते हैं । बुश बनाने के लिये तांबे का प्रयोग भी किया जा सकता है


दोस्तों अगर आप को Tecnical Switch द्वारा दी गई जानकारी आपको अच्छी तो और उपयोगी लगी है तो आपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे। और पोस्ट को Like और Share जरूर करे । और इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्प्यूटर की जानकारी के लिए हमारे ब्लॉग टेक्निकल स्विच को फॉलो करे

2 comments: