स्टार्टर की आवश्यकता (Necessity of Starter)
जब एक D.C. मोटर को सप्लाई से जोड़ते हैं या फिर जब सप्लाई करंट दिया जाता है तब इसके आर्मेचर में से बहुत अधिक करंट बहेगा क्योंकि आर्मेचर रेजिस्टैंस बहुत कम होती है। ओर इसके अतिरिक्त चालू करते समय इसमें कोई बैक E.M.F नहीं होती है जिससे मोटर के जलने के खतरे रहता है। इसलिए मोटर को स्टार्ट करते समय स्टाटिंग करंट को कम करने के लिए आर्मेचर के सीरीज में रेजिस्टेंस जोड़ दी जाती है। जो स्टार्टर के अंदर होती है।
1) आर्मेचेर कुण्डलन (winding) का विद्युतरोधन नष्ट हो सकता है।
2) दिक़परिवर्तक (commutator) पर अधिक स्फुलिंग या चिंनगारियाँ (sparking) उत्पन हो जायेंगी।
3) सप्लाई वोल्टता पर गिरावट आ सकती है।
इसलिये प्रारम्भिक धारा को सीमित करने के लिये स्टार्टर का प्रयोग किया जाता है जो कि मोटर प्रारम्भ करने के समय प्रयुक्त वोल्टता को कम करके आर्मेचेर में भेजता है। स्टार्टर का सरल रूप एक परिवर्ती प्रतिरोध (variable resistor) है,जिससे मोटर को चलाते समय आर्मेचेर की श्रेणी में जोड़ लिया जाता है । जैसे-जैसे मोटर चाल पकड़ती जाती है तथा विरोधी वि. वा. बल स्थापित हो जाता है, वैसे-वैसे प्रतिरोध को आर्मेचर परिपथ से कम करते जाते है । जब मोटर अपनी सामान्य चाल को प्राप्त कर लेती है तो प्रतिरोध को आर्मेचर परिपथ में
पूर्ण रूप से अलग कर लिया जाता है ।
इस स्टार्टर में तीन टर्मिनल (पॉइंट) बने होते हैं जिस पर L, A तथा Z अक्षर अंकित होते हैं। लाइन का धनात्मक सिरा L से संयोजित किया जाता है तथा लाइन का ऋणात्मक सिरा मोटर आर्मेचर के एक सिरे A 2 तथा क्षेत्र के एक सिरे z 2 को आपस में एक मिलाकर बने प्वाइन्ट पर दिया जाता है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है मोटर आर्मेचर का दूसरा सिरा A 2 स्टार्टर के प्वाइन्ट A से संयोजित किया जाता है तथा मोटर क्षेत्र का दूसरा सिरा Z, स्टार्टर के प्वाइन्ट Z से संयोजित रहता है। स्टार्टर का प्वाइन्ट L स्टार्टर की अधिभार कुण्डली O.C. (overload coil) द्वारा प्रारम्भन भुजा से संयोजित होती है। प्रारम्भन भुजा को पकड़ने वाला मूठ विद्युतरोधित पदार्थ से बना होता है।
D C Motor Starter Working Principle in Hindi
कार्य विधि:-
जब मोटर को प्रारम्भ (Start) करना होता है तब मुख्य स्विच को बन्द (closed) कर देते है तथा तब प्रारम्भन भुजा (Starting arm) को धीरे-धीरे दायीं ओर चलाते है। जब तक भूजा स्टैंड न० 1 के सम्पर्क में होती है तब तक क्षेत्र परिपथ (field circuit) लाइन के सीधा पाश्व (across)में संयोजित रहता है तथा इसी समय कुल प्रारम्भन प्रतिरोध (starting resistance) आर्मेचर के श्रेणी में होता है। आर्मेचर द्वारा ली गई प्रारम्भन धारा (starting current)
जहाँ Rs = प्रारम्भन प्रतिरोध तथा Ra =आर्मेचेर प्रतिरोध है।
अब जैसे ही प्रारम्भन भुजा को आगे की ओर चलाया जाता है, प्रारम्भन प्रतिरोध (Rs) घटता जाता है। अब प्रारम्भन भुजा 'ON' स्टैंड पर पहुँच जाती है अर्थात् मोटर अपनी पूर्ण गति प्राप्त कर लेती है तब प्रारम्भन प्रतिरोध पूर्ण रूप से कट जाता है।
वोल्टताहीन कुण्डली (No-volt-coil) –
यह कुण्डली सिलिकॉन मिश्रधातु पत्तियों (lamination) पर कुण्डलित(winding) होती है। जिसमें पतले विद्युतरोधित तार से इतने वर्तन(टर्न) दिये जाते है कि मोटर क्षेत्र की पूर्ण धारा उससे सरलता से प्रवाहित हो सके वोल्टताहीन कुण्डली (NC). क्षेत्र टर्मिनल Z की श्रेणी में जोड़ी जाती है । इस कुण्डली के मुख्य दो कार्य हैं । प्रथम, प्रारम्भन भुजा (starting arm) को चुम्बकीय बल द्वारा मोटर की पूर्ण गति की स्थिति में ON' स्टैंड पर पकड़े रखना तथा दूसरा यदि सप्लाई वोल्टता अचानक बन्द हो जाये तो अचुम्बकीय होकर प्रारम्भन भुजा को छोड़ देना, ताकि यह स्प्रिंग दाब के कारण 'OFF' स्थिति पर चली जाये तथा पुनः विद्युत सप्लाई आने पर मोटर को सुरक्षापूर्वक प्रारम्भ किया जा सके।
अधिभार कुण्डली (over load coil) या O C:-
यह कुण्डली मोटे विद्युतरोधी तारों के बहुत कम वर्तनों (turns) से बनी होती है तथा प्रारम्भन भुजा(staring arm) तथा लाइन के श्रेणी में जुड़ी रहती है। इसका मुख्य कार्य परिपथ में अधिक लोड धारा प्रवाहित होने पर, चुम्बकीय क्षेत्र उत्पत्र करके लीवर (lever) को उठा कर वोल्टताहीन कुण्डली (NC) के दोनों सिरों को मिला देना है, जिससे वोल्टताहीन कुण्डली (NC) अचुम्बकीय होकर प्रारम्भन भुजा को छोड़ दे तथा प्रारम्भन भुजा स्प्रिंग प्रभाव से 'OFF अवस्था में आ जाये। इस प्रकार अधिभार कुण्डली O C किसी दोष के कारण मोटर आर्मेचर (armature) परिपथ में अधिक धारा प्रवाह होने के सम्भावित खतरे से सुरक्षा,वोल्टताहीन कुण्डली (NC) के सहयोग द्वारा प्रदान करती है।
स्टार्टरों के प्रकार (Types of starters)
1. D.C. थ्री-प्वाइंट स्टार्टर, और
2. D.C. फोर-प्वाइंट स्टार्टर
D.C. शंट या कम्पाउन्ड मोटर निम्नलिखित में से किसी एक स्टार्टर द्वारा चलायी जा सकती है।
3. D.C. टू-प्वाइंट स्टार्टर, का उपयोग सीरीज मोटर को चलाने में किया जाता है।
दिष्ट धारा मोटर स्टार्टर (D.C. MOTOR STARTER). स्टार्टर की आवश्यकता D C Motor Starter Working Principle in hindi
thanks nice information
ReplyDeleteGood Sir
ReplyDeletesuper sir
ReplyDeleteNice sir
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